जो है उसकी चिंता करने की क्या जरूरत है जैसे कि वर्तमान जो नही है उसे पाने की दौड़ लगाना एक वहशीपन है जैसे की भविष्य है और नहीं के बीच एक तनाव है यह उम्मीद का तनाव और इस तनाव के साथ जीते जाने में क्या हर्ज है।
हिंदी समय में श्रीप्रकाश शुक्ल की रचनाएँ